"उन्मत्त"
अहसास और संवेदनाएं
Sunday, April 1, 2012
Friday, March 23, 2012
Wednesday, March 21, 2012
जो तुम होते ..................
जीवन में बहुत सी घटनाए ऐसी होतीं हैं, जिस पर हम सब का कोर्इ भी जोर नहीं चलता और न ही वो हमारे लिए सकारात्मक होती है। ऐसी सिथति में मन को सिर्फ सांत्वना ही देना होता है, किसी न किसी बहाने। उसके सिवाय कोर्इ और रास्ता भी नहीं होता है पास। क्योंकि मात्र इसी रास्ते से मन को राहत रहती है।
कितना अच्छा होता, जो तुम होते,
वक़्त हमारा होता, जो तुम होते।
वक़्त हमारा होता, जो तुम होते।
रिमझिम बूदें और बरसतीं फिर,
सावन पगलाया होता, जो तुम होते।
सासों और धड़कन में होती जंग बहुत,
ख़्वाब मुस्कराता होता, जो तुम होते।
बेहाल न होता किसी हाल में दिल,
दर्द बेकल न होता, जो तुम होते।
न वक़्त ठहरता, न ही हम हमदम,
जीवन चलता होता, जो तुम होते।
तुम न आए तो बदल गया ''उन्मत्त'',
मैं मैं ही रहा होता, जो तुम होते।
''उन्मत्त''
Thursday, March 8, 2012
फिर आयी होली........................
होली है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!होली है
फिर आयी है होली, वही नशा, वही खुमारी, वही जोश, जो हमेशा से रहा है और यकीनन रहेगा भी। होली के दिन शरारतें करने का जी फिर से करने लगता है और करना भी चाहिए। होली हो और शरारत न हो, ये ज़रा अटपटा है, क्योंकि अगली होली तक यही शरारतें ही याद आती हैं और फिर अगली होली तक यानि हमेशा होली में और होली के बाद शरारतों को ही याद रखा जाता है।
तो जम कर खेलिए होली, जम कर करिए शरारत, बशर्ते आपकी शरारत से किसी का दिल न दुखे।
जम कर खाइए होली के पकवान और जम कर खिलाइए।
होली है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!होली है
आयी है होली फिर,
आएगें होरियारे फिर,
आ गया है फागुन फिर,
आएगें रंगों के फौव्वारे फिर।
भाग रहा है हमसे कोर्इ,
भगा रहा है हमको कोर्इ,
छिप रहा है हमसे कोर्इ
छिपा रहा है हमको कोर्इ
झूम रहें हैं सब मस्ती में,
भीग रहे हैं सब रंगों में,
कुछ डूबे हुए हैं भंगों में,
कुछ रंगें है रंगीले रंगों में।
सबकी अपनी होली है,
सबकी अपनी टोली है
सबने नफ़रत भूली है
खुली ये फागुल की झोली है।
आओ - आओ तुम भी आओ,
खुशियों की बयारों में खो जाओ,
खुशी बिखेरो, खुशिया पाओ,
खुला है 'उन्मत्त तुम भी खुल जाओ।
Wednesday, February 22, 2012
जाने क्यों............?
कभी कभी कुछ भी अच्छा नहीं लगता है, क्यों? इस बात को जान पाना ज़रा कठिन होता है। बस बैठे बिठाए मन उचट सा जाता है और मन करता है कि बस कहीं दूर एकान्त में जाकर अपने आप को अकेला छोड़ दिया जाए। लेकिन जब स्वयं को एकान्त में लाकर छोड़ दिया जाता है, तब स्वयं को धीरे धीरे यह अहसास होने लगता है कि आखि़र क्या कारण है जो कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा होता है।
ज़ख्म बहुत हमने खाए हैं,
बदन इसलिए हम छुपाए हैं।
अभी और कुछ सुनाना बाकी रह गया,
वो इसलिए ही तो लौट के आए हैं।
हम ही निभाते मोहब्बत कब तलक यूं हीं,
उनकी ही अदा को अब हम अपनाए हैं।
ज़ख्म जि़स्म का नहीं, दिल का रूलाएगा,
बड़ी देर में दीवानों को ये समझा पाए हैं।
फि़तरत भी बदल देती है मोहब्बत, ये सोच लेना,
करने को तो मोहब्बत हजारों यहा आए हैं।
''उन्मत्त" जैसे चाहना, वैसे ही जीना,
लोग तो बहुत कुछ बताने आए हैं।
''उन्मत्त"
Tuesday, February 14, 2012
कल, फिर से ................
किसी को भी भूल जाना बहुत ही सहज है। कुछ दिन ही किसी की यादें आपको परेशान और हैरान कर सकती हैं, ज्यादा दिन नहीं। अगर आप थोड़ा गौर करेगें तो पाएगें कि कब आप किसी के साथ बिताये समय से बाहर आ गये, पता ही नहीं चलेगा। समय सब कुछ पहले सा सामान्य कर देता है, लेकिन समय कितना भी बीत जाए, वही समय एक समय ऐसा भी सामने ला कर खड़ा कर देता है कि, फिर से हर बात, हर बीता समय सामने आ खड़ा होता है। और ऐसे समय में, अगर आप मात्र और मात्र अपने साथ हों, तो यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि, जो बीत रहा है वह सच में याद है या फिर वास्तविकता।
तुम हो या यादें सोच रहा हॅूं,
बीते लम्हों के संग खेल रहा हॅूं।
शाम लिए नश्तर हाथों में आती है,
खुद को खुद से लड़ते देख रहा हॅूं।
न मानों मेरी तो, दीवारों से सुन लो,
तकलीफ़ों के साथ फल फूल रहा हॅूं।
जश्न मनाएगें दर्दो के संग फिर से,
चलना तो अब मैं सीख रहा हॅूं।
हैं मुस्कानें मुझमें भी रहतीं ढेरों,
बस हॅसने की वहज खोज रहा हॅूं।
मैं मैं हॅू, भीड़ नहीं हॅू "उन्मत्त",
खुद अपने में तुमको ढूंढ रहा हॅूं।
"उन्मत्त"
Tuesday, February 7, 2012
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