Monday, December 27, 2010

अब मिल के चलना होगा, हमको तुमको






जिस
तरह का दौर आज है, उसमे जीना बहुत ही दूभर हो चुका है। व्यक्ति अपनी सीमाओं के निम्नतर स्तर गया है। जिनके हाथों में हमने देश को सौंपा कि वो इसे और भी आगे ले जाएगें, उन्होनें बहुत ही ढीठाई के साथ, आम आदमी यानि हमको आपको ठेंगा दिखाते हुए हमारे इस महान भारत को बेंच देने का पूरा खाका तैयार करके रखा हुआ है।


प्रजातन्त्र में फैला हुआ यह भ्रष्टाचार किस हद तक पहुँच चुका है, यह किसी भी व्यक्ति से छुपा नहीं है, हर व्यक्ति जानता है कि जिसने हमने मतों के जरिए जन सेवक बनाया है उसने हमारे साथ क्या किया है? खरबों रूपया विदेशों में जमा है। जिसका कोई हिसाब किताब नहीं है। हर व्यक्ति आँख बन्द करके बैठा है कि, होने दो जो हो रहा है, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, यह हम आप हैं जो सब कुछ कर सकते हैं, लेकिन अभी तक यकींनन हमने या आपने ऐसा सोचा ही नहीं कि ऐसा किया जाए। किसी दिन कुछ करने का निर्णय लेके देखिए फिर देखिएगा कि आपमें कितनी क्षमता है।

मैं आपका आवह्न करता हूँ कि, आइए हम सब मिल करके कुछ ऐसा करें कि, सब कुछ बदल जाए, वो बदल जाए जो गलत है, वो भी बदल जो गलत कर रहें है और गलत करने की सोच रहें हैं।




अब तो कुछ करना होगा हमको तुमको,
अब मिल के चलना होगा, हमको तुमको।

बढ़ रहा है ज़ोर ज़ालिमों को दिन-ब-दिन,
अब करके सामना मरना होगा, हमको तुमको।

बहुत सहा है हमने अब तक, ख़ामोशी से,
अब नक्कारी चोट पर कहना होगा, हमको तुमको।

वायदों में ही गुजर गया जीवन सारा अपना,
अब ज़ोश नस्लों में भरना होगा, हमको तुमको।

और नही अब और नहीं यह आगे होगा,
अब जीन को मरना होगा, हमको तुमको।

"उन्मत्त" कहॉ गया वो सच का साथी,
अब चलने को उठना होगा, हमको तुमको।

"उन्मत्त"

Saturday, December 4, 2010

अच्छाई



जीवन का कोई मोल हो सकता है क्या? या यूँ कहें कि क्या कोई किसी के जीवन का मोल अदा कर सकता है? कई बार इस प्रश्न का उत्तर हमने अपने आप से जानना चाहा है लेकिन कभी सही उत्तर या फिर स्वयं को संतुष्ट कर पाए, ऐसा उत्तर अपने आप को हम नहीं दे पाए हैं। लगातार सालों से यह आज भी हम अपने आप से जानने को प्रयासरत् हैं लेकिन सफलता अभी तक हमारे हाथ नहीं आयी है और कब मिलेगी? इस आशा की किरण भी नहीं दिख रही है। लेकिन कहीं कहीं मन में इस बात का विश्वास है कि, हो हो इस प्रश्न का कोई तो उत्तर है हमारे पास और हम एक दिन अपने आप से यह उत्तर जान पाऐगें, आज बस समय हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा है।

अपने आस पास को देखने से अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग महत्व का विषय है जीवन। किसी के लिये यह बोझ है, तो किसी के लिए जीवन आनन्द है, कुछ लोगों के लिए यह नीरस जीवन है। जो सबसे अधिक जान पाए है हम, वह यह है कि अधिकतर लोगों ने जीवन को बस एक ही भाव में रखा हुआ है, कहने का तात्पर्य कि, उनका जीवन ठहरा हुआ है, बुरा है तो बुरा ही है, नीरस है तो बस नीरस ही है, अपरिर्वनीय माना हुआ है ज्यादातर लोगों ने। लेकिन इस परिवर्तनशील संसार में उन सबहों का जीवन कैसे अपरिवर्तनशील हो सकता है? यह हमारे समझ से परे रहता है।

कुछ भी हो ज्यादातर लोगों ने जीवन को नकारात्मक बना के रखा हुआ है और अपनी नकारात्मक सोच के कारण उनके कृत्य भी नकारात्मक होते हैं। ऐसे लोगों को नए सिरे आत्म मन्थन की आवश्यकता है और यह जानने की आवश्यकता है कि कैसे अपने आप को परिवर्तित करके अपने विचारों से, अपने कर्तव्य और अपने व्यवहार से औरों में परिवर्तन की लहर को संचारित कर सकें।



आख़िर वह कौन है जो

हमें रोकता है

कहीं कोई किसी भी अच्छाई करने से

क्या यह सच है कि वाकई

दुनिया वालों की नफ़रत है इस भलाई से

आख़िर यह कब तक चलेगा

उस दिन को आना ही होगा

कब तक उठाता रहेगा सिर वह

एक दिन तो

इस सूरज को ढलना ही होगा

कितना भी प्रयत्न करता रहे कोई

कि

रोक नहीं सकता है

उस सूरज को उगने से

उसे उगना ही होगा

नयी लहर

नयी उम्मीद और भावनाओं से

किसी भी कीमत पर उगना होगा उसको

उसकी कीमत निश्चय ही शीश हमारा होगा

स्वीकार है हमें यह कीमत

तैयार है हम

जब भी उसकी ज़रूरत होगी

सब के लिए

जहॉ के लिए

तैयार है हम।

उन्मत्त

Tuesday, November 30, 2010

समय प्रवाह


कभी कभी जीवन में ऐसे भी पल जाते है जहाँ से कुछ भी सोच पाना, कर पाना सब ही मुशिकल हो जाता है बिना किसी बात के ही तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप आप पर लगा दिया जाता है मुश्किल तब और भी हो जाती है जब उन आरोपों के साथ ही रहना होता है, उन्ही आरोपों के कलंक के साथ जीवन निर्वाह करना पड़ता है जीवन के इस अप्रत्याशित दौर से गुजरते हुए अपने आप को सही साबित करने की कभी आवश्यकता ही महसूस नहीं होती है क्योंकि जिसने आप पर आरोप लगाए होते हैं, उसके प्रति एक शब्द बोलने को मन भी साथ नहीं होता है।
जीवन का अपना लेखा-जोखा है, उसके अपने नियम, अपने विनियम है, जिसमें वह किसी प्रकार का हस्तक्षेप को नहीं चाहता है। इसी अनुक्रम में जो हो रहा होता है, वह होता ही रहता है। भले हम लाख प्रयास करें कि, ऐसा न हो, लेकिन होता वही है जो वास्तव में होना होता है। कुछ भी बदल नहीं सकता है, कम से कम त्वरित, तत्क्षण तो कुछ भी नहीं बदल सकता है, जो होना होगा वो होगा ही।


वक़्त कितना भी बुरा आ जाए मगर,
इंसा हर वक़्त में जीना सीख लेता है।


हँसेगा और मुस्कराएगा कितने पल ग़म,
इंसा हर ग़म में जीना सीख लेता है।


दर्द की टीस उठेगी भी तो कितनी उठेगी,
इंसा हर टीस में जीना सीख लेता है।


बद्किस्मती दबाए गला भी क्या होगा,
इंसा हर हाल में जीना सीख लेता है।


निकलना भले हो ही जाए दुस्वार घर से,
इंसा शर्मिदगी में जीना सीख लेता है।


"उन्मत्त" कम परेशान नहीं करती ज़िन्दगी भी,
इंसा हर परेशान में जीना सीख लेता है।


"उन्मत्त"

Thursday, February 25, 2010

फागुन आयो रे ---- रंग उड़े, उड़े रे गुलाल







होली पर्व की ढेरों शुभकामनायें




हर होली के रंगों में यूँ रंग जाए जीवन सारा, कि जीवन के हर पर पल रंगीन हो उठे। आशाओं और उम्मीदों के रंग, वास्तविकता की पिचकारियों और प्रेम, सौहार्द के साथ आप पर यूँ बरसे के जीवन की यह होली, एक दिन की न हो, यह होली सारे जीवन की हो।

होली की ढेर सारे रंगों के बीच, पापड़ और गुझियों के साथ, अबीर और गुलाल के फुहारों के मध्य, किसी भी हाल कोई दिल न दु:खे, इस बात का पूरा ख्याल रखिए। सिर्फ रंग ही नहीं प्यार को भी बरसाइए, इस बरस इस होली में।




होली है तो, है हुड़दंग,
साथ साथ है, है संग संग,
बॉट रहें हैं खुशियाँ सब,
बॉट रहे हैं भंग।


कुछ भाग रहें हैं रंगों से,
कुछ भाग रहें हैं खुशियों से,
कुछ खोए हैं अपने से,
कुछ खोए हैं हँसियों से।


दिल खुल जाएगा तो,
मिल जाएगें अपने भी,
बढ़ जाए हौसला तो,
खिल जाएगें सपने भी,


हाथ ही नहीं, दिल भी बढ़ा,
कदम ही नहीं, जज्बात भी चला,
"उन्मत्त" शब्द ही नहीं, भाव भी दिखा,
रंगों के ढेर में अपने दिलों को मिला।
"उन्मत्त"
--- अहसास और संवेदना ---