जिस तरह का दौर आज है, उसमे जीना बहुत ही दूभर हो चुका है। व्यक्ति अपनी सीमाओं के निम्नतर स्तर आ गया है। जिनके हाथों में हमने देश को सौंपा कि वो इसे और भी आगे ले जाएगें, उन्होनें बहुत ही ढीठाई के साथ, आम आदमी यानि हमको आपको ठेंगा दिखाते हुए हमारे इस महान भारत को बेंच देने का पूरा खाका तैयार करके रखा हुआ है।
प्रजातन्त्र में फैला हुआ यह भ्रष्टाचार किस हद तक पहुँच चुका है, यह किसी भी व्यक्ति से छुपा नहीं है, हर व्यक्ति जानता है कि जिसने हमने मतों के जरिए जन सेवक बनाया है उसने हमारे साथ क्या किया है? खरबों रूपया विदेशों में जमा है। जिसका कोई हिसाब किताब नहीं है। हर व्यक्ति आँख बन्द करके बैठा है कि, होने दो जो हो रहा है, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, यह हम आप हैं जो सब कुछ कर सकते हैं, लेकिन अभी तक यकींनन हमने या आपने ऐसा सोचा ही नहीं कि ऐसा किया जाए। किसी दिन कुछ करने का निर्णय लेके देखिए फिर देखिएगा कि आपमें कितनी क्षमता है।
मैं आपका आवह्न करता हूँ कि, आइए हम सब मिल करके कुछ ऐसा करें कि, सब कुछ बदल जाए, वो बदल जाए जो गलत है, वो भी बदल जो गलत कर रहें है और गलत करने की सोच रहें हैं।
अब मिल के चलना होगा, हमको तुमको।
बढ़ रहा है ज़ोर ज़ालिमों को दिन-ब-दिन,
अब करके सामना मरना होगा, हमको तुमको।
बहुत सहा है हमने अब तक, ख़ामोशी से,
अब नक्कारी चोट पर कहना होगा, हमको तुमको।
वायदों में ही गुजर गया जीवन सारा अपना,
अब ज़ोश नस्लों में भरना होगा, हमको तुमको।
और नही अब और नहीं यह आगे होगा,
अब जीन को मरना होगा, हमको तुमको।
"उन्मत्त" कहॉ गया वो सच का साथी,
अब चलने को उठना होगा, हमको तुमको।