उदास और हताश व्यक्तियों की इस दौर में कोई कमी नहीं है, जिस ओर नज़र उठती है, ऐसे व्यक्तियों की संख्या का ऑकलन नहीं किया जा सकता है। क्या हो गया है इस समय को? या फिर पूछे कि क्या हो गया है आज के लोगों को? कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो है जिसे बदला ही होगा, अन्यथा जो हाल सामने है, वह तो तिल मात्र भी सही नहीं है। एक बात और विचित्र है इस उदासता और हताशता की, वह यह कि जो भी इस दौर में हैं, ज्यादा से ज्यादातर को स्वयं नहीं पता है कि वो ऐसे क्यों है? वैसे ऐसा मात्र वे लोग ही मानते है, जबकि सच तो यही है कि बिना उनके चाहे, उनकी कोई भी मदद नहीं कर सकता है, अपनी स्थिति को सुधारने का पूरा सामर्थ्य उन्हीं में होता है और उसके कर्ता धर्ता भी वही होते है।
मेरी सहानुभूति ऐसे हर उस व्यक्ति के साथ है, जो जीवन में उदास और हताश हैं। व्यक्तिगत रूप से सम्भवतः हम यही कर सकते हैं कि बस अपनी बात उन तक पहॅुचाने का प्रयास कर सकते है। सम्भवतः हमारी आगे उद्धरित की जाने वाली रचना आपको या आपके किसी स्वजन को, उनको उस मनःस्थिति से निकालने में सहायक हो। यही हमारी चाह है और आप इससे जल्द से जल्द अलग हो, जीवन का पूर्ण आनन्द लें।
बदल जाए ज़िन्दगी जरा मुस्कराइए,
बढ़ आएगी ख़ुशी कदम तो बढ़ाइए।
मिट जाएगा कल का दर्द भी,
करके हौसला खुद को समझाइए।
छोटी ही सही, शुरूआत तो हो,
दुनिया की सोचों से, बस अलगाइए।
थम - थम के सही, चलता चल राह,
प्यास अपनी अब पसीनों से बुझाइए।
जो होगा कल, उसे खोने का डर क्यों,
आज है जो, पहले उसे तो अपनाइए।
‘‘उन्मत्त’’ उदासियों का आशियाना न बन,
खूबसूरत मुस्कराहटों को दिल से लाइए।
बढ़ आएगी ख़ुशी कदम तो बढ़ाइए।
मिट जाएगा कल का दर्द भी,
करके हौसला खुद को समझाइए।
छोटी ही सही, शुरूआत तो हो,
दुनिया की सोचों से, बस अलगाइए।
थम - थम के सही, चलता चल राह,
प्यास अपनी अब पसीनों से बुझाइए।
जो होगा कल, उसे खोने का डर क्यों,
आज है जो, पहले उसे तो अपनाइए।
‘‘उन्मत्त’’ उदासियों का आशियाना न बन,
खूबसूरत मुस्कराहटों को दिल से लाइए।
‘‘उन्मत्त’’