Tuesday, January 25, 2011

मॉ भाग - 2


............ पूर्व से जारी
मातृऋण 
संसार का सबसे बड़ा ऋण है
उससे उऋण हो पाना
मुश्किल ही नहीं
असम्भव है
शब्द नहीं मेरे पास
कि
मॉ को
मैं लिख सकूँ
यही शायद सबसे बड़ी बात है
कि
जिसके लिए कुछ कहा जाए
और
उसके लिए कहने को
आपके पास शब्द हो
शब्दों का आभाव हो
क्या कहा जाए
क्या सोचा जाए
शब्द ही ढूढ़ने पड़ें
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कि
क्या कहें
क्या कहें
मगर
कुछ कहा जाए
यह न्यायसंगत होगा
कुछ कहना रूरी है
उन्मत्तका शब्दको
आज खाली है
कहता है मुझसे
कि
कौन सा अध्याय खोला है
जिस अध्याय के काबि
मेरे पास शब्द नहीं है
और क्या कहेगा तू
कह जो कहना है तुझे
मेरे पास शब्द नहीं
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कह तो बस
अपनी भावनाओं से
अपने अनुभव से
अपने कर्तव्य से
अपने दिल से
अपने अहसासों से
अपनी कलम से
मुझमें सामथ्र्य नहीं
कि
मैं बखान करूँ
मॉ का
मॉ
एक शब्द नहीं शायद
अपने आप में
एक दुनिया है
अपने आप में
पूरी एक उम्र है
कुछ सालों में ही
जिसे आप जीते है
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जब तक मॉ का
आँचल है सर पर
और
आप उसकी गोद में
छोड़ भागकर आते है
वह समय स्वर्ग है
एक मुस्कान पर
मॉ
आपको चॉद तारे ले आने
का वादा करती है
चन्दा मामा की कहानी सुनाती है
पहली बार आपके खड़े होने पर
हमारी कल्पनाओं से ऊंचा
वह सोचती है
कि
वह खुद ही है
जो आज
फिर से चल पड़ी है
कुछ समय बाद
जब आप
मॉ
कह कर पुकारते है
तो
यह वही सीमा होती है
जहॉ
मॉ
रो पड़ती है
खुशी से
यह शब्द सुनने के लिए
उसके कान तरसते रहते है
अपना जन्म सफल मानती है
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मॉ शब्द
मॉ के लिए क्या है
यह तो यकीनन
भगवान को भी नहीं मालूम होगा
अनन्त खुशी का क्षण
वह दिन
उसकी पूरी उम्र का होता है
उसके पॉव नहीं पड़ते जमीं पर
उस पल वह
हवाओं से बातें करती है
इस मॉ को प्रणाम
करबद्ध
कोटि कोटि प्रणाम
जो हर रोज़ मरती है
जो हर रोज़ जीती है
जो हर रोज़ जिलाती है
विपरीत स्थितियों में
घुट घुट के
मर मर के
मगर
खुशी से
दिल से
जिलाती है हमें
अगर अपनी मौत तक
उस चरणों में बैठ कर
पूजा करनी हो
उन चरणों को धोना हो
साफ करना हो
उसकी सेवा करनी हो
तो
वह नगण्य होगा
उस मॉ के
त्याग के मुकाबले
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ईश्वर की पूजा से पहले
उन्मत्त
वह चरण पूजेगा
उससे बड़ा स्वर्ग
उससे बड़ा दर्जा
मैं
मॉ को दूगॉ
कभी मैंने
ईश्वर को नहीं देखा
महसूस किया
छुआ कभी
ही उसने कभी मुझे
गोद में लेके घुमाया
ही पैरों पर बिठा के
खाना खिलाया
झूला झूलाया
या
दूध पिलाया
ही रोने पर मेरे
कहानियॉ सुनाई
ही भूख पर कभी भी
छाती से लगा कर
दूध पिलाया
ही सुलाने की खातिर
थपकी देकर लोरियॉ सुनायी
ही बाहों में झुलाया
सब कुछ मॉ करती है
ऐसे पर
कैसे पूजे
मॉ को
भगवान सदा पीछे रहेगा
मॉ के
हमेशा ही पीछे रहेगा
मॉ के।

 उन्मत्त   

Saturday, January 15, 2011

मॉ भाग -1



हमारे पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है] मॉ के लिए उसके बाद भी हमारी यह हिम्मत ही है कि] हम कुछ कहने का प्रयास करने जा रहे हैं।

बहुत सोचने के बाद हमने यही कहने की सोची है कि] इसके बारे में कुछ न कहा जाए] क्योंकि कुछ न कहना ही सर्वोच्च होगा।

आगे लिखी पंक्तियों के माध्यम से ही अपनी बात को कहना चाहेगें।


मॉ

जिसमें मेरा
निर्माण हुआ
जहॉ मेरा सृजन हुआ
जहॉ मैं
एक कोशिका से
अपने इस स्वरूप में आया
जिसने अपना खून पिलाया
जिसने आँसू के बीच भी
हर रात मेरी ख़ातिर
खुद जागकर
लोरी सुनाई
उस मॉ को
कोटि कोटि
चरण वन्दन

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इस मातृऋण से
कैसे उऋण हुआ जा सकता है
जिसने
खुद को निचोडा
खुद को दु:ख दिया
कदमों पर खड़ा किया
अँगुली थाम के मेरी
ज़िन्दगी की राहों पर
चलना सिखाया
उस मॉ को
प्रणाम

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माँ के चरणों में
शत् शत् प्रणाम
शत् शत् नमन
उन्हीं चरणों में मन्दिर है
उन्हीं चरणों में देवी है
उन्हीं चरणों में देवता है
उन्हीं चरणों में सुख है
उन्हीं चरणों में हर मुश्किल का हल है
उन्हीं चरणों में दुनिया है
उन्हीं चरणों में सब कुछ है
प्यार का सागर है
मॉ

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उसके आँचल में
असीम चैन का वास है
दुनिया की भागती ज़िन्दगी
उसमें आके थम जाती है
वहॉ एक ही बात है
वह यह
कि
वह आँचल है
जिसका विस्तार
यकीनन
विशाल आकाश से बड़ा है
भौतिकता भले कहे
कि
कुछ गज कपड़ा है
मगर
वह सर पर आए
तो
हर कष्ट
से मुक्ति मिल जाती है

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माँ के स्पर्श का जादू
भी कम नहीं
जन्मों की थकान
एक छुवन में
कई जन्मों के लिए
ख़त्म हो जाती है
उसी की अंगुली हम सबको
एक दिन दुनिया का रास्ता दिखाती है
लड़खड़ाते कदमों को
सम्भाल पाना उसी के बस में है
क्या शेष रह जाता है
मॉ
के हाथों से छूटा हुआ
ऐसा कोई क्षेत्र नहीं
ऐसी कोई बात नहीं
जिसे वह जान न सके
चोट लगे आपको कहीं
तो
वह मॉ
ही है अकेली
सबसे पहले जानती है
आपसे ज्यादा दर्द
उसको होता है
शायद
आप अपनी चोटों पर
रोए या न रोए
मगर
मॉ
ज़रूर रोती है
उस पल तक
जब तक
कि
हम फिर से
खड़े नहीं होते

क्रमश:..............

Wednesday, January 5, 2011

समानता



अजीब विडम्बना ही है यह कि, हर कोई जानता है इस बात को मगर अपने अपने तरीकों से नकारता फिरता है। हर कोई परिचित है करीब करीब जीवन से, उसके तौर तरीकों से, उसके बाद भी ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे कोई कुछ जानता ही न हो। अनजान और अज्ञान बन जाते हैं सब के सब। मगर क्या इससे कोई फायदा होता है, मेरा ख्याल है कि, इससे कोई फायदा नहीं होता है, आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं, मगर क्या अपने आप को धोखा दे पाएगें। और अगर ऐसा कर भी पाए एक बार तो प्रश्न यह है कि, कितनी देर तक ऐसा हो पाएगा कि आप भ्रम में रहें और अज्ञानता को दिखाए? निश्चित ही बहुत देर तक नहीं हो सकता है यह। कुछ पल या कुछ दिन, अगर बहुत ज्यादा हुआ तो, अन्यथा तो इस बात की जानकारी होती ही है कि, हम स्वयं को छल रहें हैं।



समानता


ग़म और  ख़ुशी
एक लहर हैं दोनों
ठहरता कोई नहीं
गुजर जाते हैं दोनों ही
फितरत में नहीं हैं
उनके ठहर जाना
और
ठहरें भी क्यों
कोई एक भी
अगर ठहर गया
तो
जिन्दगी ठहर जाएगी
फिर
न  ख़ुशियाँ  ख़ुशी देगीं
न ग़म दु:ख देगा
इसलिए बस
दोनों चलते ही जाते हैं
लगातार
अनवरत्
जीवन भर
जीवन में।

"उन्मत्त"

Saturday, January 1, 2011

नूतन वर्ष, नूतन ध्येय, नूतन लक्ष्य



नव वर्ष की कोटि कोटि हार्दिक बधाइयॉ

इस उम्मीद के साथ कि भाग्य आपके पीछे पीछे चला करे। वो सब कुछ जो आपका ख़्याल है,
जो आपका ख़्वाब है, जो आपकी चाह है,
ईश्वर उसे आपको प्रदान करेगें।

इस विश्वास के साथ कि
दिन-ब-दिन आप, आपकी सोच, आपकी विचारधारा और भी परिपक्व और सुदृढ़ हो।

नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाए

इस ख्वाहिश साथ कि
आप जितना किस्मत से चाहें, उससे अधिक आपको प्राप्त हो।

इस तमन्ना के साथ कि
वक्त भी आपका चाहा, आपको वक्त से पहले देने को मजबूर हो।

इस हसरत के साथ कि
सारी उम्र हर पल, हर लम्हा आपके चेहरे पर मनमोहक मुस्कान हो।

इस दुआ के साथ कि

खुशियाँ
आपके साथ रहे, आप सफलतों के पायदानों पर चढ़ते जाए।