Wednesday, February 22, 2012

जाने क्यों............?






            कभी कभी कुछ भी अच्छा नहीं लगता है, क्यों? इस बात को जान पाना ज़रा कठिन होता है। बस बैठे बिठाए मन उचट सा जाता है और मन करता है कि बस कहीं दूर एकान्त में जाकर अपने आप को अकेला छोड़ दिया जाए। लेकिन जब स्वयं को एकान्त में लाकर छोड़ दिया जाता है, तब स्वयं को धीरे धीरे यह अहसास होने लगता है कि आखि़र क्या कारण है जो कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा होता है।   


ज़ख्म बहुत हमने खाए हैं,
बदन इसलिए हम छुपाए हैं।

अभी और कुछ सुनाना बाकी रह गया,
वो इसलिए ही तो लौट के आए हैं।

हम ही निभाते मोहब्बत कब तलक यूं हीं,
उनकी ही अदा को अब हम अपनाए हैं।

ज़ख्म जि़स्म का नहीं, दिल का रूलाएगा,
बड़ी देर में दीवानों को ये समझा पाए हैं।

फि़तरत भी बदल देती है मोहब्बत, ये सोच लेना,
करने को तो मोहब्बत हजारों यहा आए हैं।

''उन्मत्त" जैसे चाहना, वैसे ही जीना,
लोग तो बहुत कुछ बताने आए हैं।

                                                                 ''उन्मत्त"

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