Saturday, January 15, 2011

मॉ भाग -1



हमारे पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है] मॉ के लिए उसके बाद भी हमारी यह हिम्मत ही है कि] हम कुछ कहने का प्रयास करने जा रहे हैं।

बहुत सोचने के बाद हमने यही कहने की सोची है कि] इसके बारे में कुछ न कहा जाए] क्योंकि कुछ न कहना ही सर्वोच्च होगा।

आगे लिखी पंक्तियों के माध्यम से ही अपनी बात को कहना चाहेगें।


मॉ

जिसमें मेरा
निर्माण हुआ
जहॉ मेरा सृजन हुआ
जहॉ मैं
एक कोशिका से
अपने इस स्वरूप में आया
जिसने अपना खून पिलाया
जिसने आँसू के बीच भी
हर रात मेरी ख़ातिर
खुद जागकर
लोरी सुनाई
उस मॉ को
कोटि कोटि
चरण वन्दन

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इस मातृऋण से
कैसे उऋण हुआ जा सकता है
जिसने
खुद को निचोडा
खुद को दु:ख दिया
कदमों पर खड़ा किया
अँगुली थाम के मेरी
ज़िन्दगी की राहों पर
चलना सिखाया
उस मॉ को
प्रणाम

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माँ के चरणों में
शत् शत् प्रणाम
शत् शत् नमन
उन्हीं चरणों में मन्दिर है
उन्हीं चरणों में देवी है
उन्हीं चरणों में देवता है
उन्हीं चरणों में सुख है
उन्हीं चरणों में हर मुश्किल का हल है
उन्हीं चरणों में दुनिया है
उन्हीं चरणों में सब कुछ है
प्यार का सागर है
मॉ

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उसके आँचल में
असीम चैन का वास है
दुनिया की भागती ज़िन्दगी
उसमें आके थम जाती है
वहॉ एक ही बात है
वह यह
कि
वह आँचल है
जिसका विस्तार
यकीनन
विशाल आकाश से बड़ा है
भौतिकता भले कहे
कि
कुछ गज कपड़ा है
मगर
वह सर पर आए
तो
हर कष्ट
से मुक्ति मिल जाती है

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माँ के स्पर्श का जादू
भी कम नहीं
जन्मों की थकान
एक छुवन में
कई जन्मों के लिए
ख़त्म हो जाती है
उसी की अंगुली हम सबको
एक दिन दुनिया का रास्ता दिखाती है
लड़खड़ाते कदमों को
सम्भाल पाना उसी के बस में है
क्या शेष रह जाता है
मॉ
के हाथों से छूटा हुआ
ऐसा कोई क्षेत्र नहीं
ऐसी कोई बात नहीं
जिसे वह जान न सके
चोट लगे आपको कहीं
तो
वह मॉ
ही है अकेली
सबसे पहले जानती है
आपसे ज्यादा दर्द
उसको होता है
शायद
आप अपनी चोटों पर
रोए या न रोए
मगर
मॉ
ज़रूर रोती है
उस पल तक
जब तक
कि
हम फिर से
खड़े नहीं होते

क्रमश:..............

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