Wednesday, January 5, 2011

समानता



अजीब विडम्बना ही है यह कि, हर कोई जानता है इस बात को मगर अपने अपने तरीकों से नकारता फिरता है। हर कोई परिचित है करीब करीब जीवन से, उसके तौर तरीकों से, उसके बाद भी ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे कोई कुछ जानता ही न हो। अनजान और अज्ञान बन जाते हैं सब के सब। मगर क्या इससे कोई फायदा होता है, मेरा ख्याल है कि, इससे कोई फायदा नहीं होता है, आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं, मगर क्या अपने आप को धोखा दे पाएगें। और अगर ऐसा कर भी पाए एक बार तो प्रश्न यह है कि, कितनी देर तक ऐसा हो पाएगा कि आप भ्रम में रहें और अज्ञानता को दिखाए? निश्चित ही बहुत देर तक नहीं हो सकता है यह। कुछ पल या कुछ दिन, अगर बहुत ज्यादा हुआ तो, अन्यथा तो इस बात की जानकारी होती ही है कि, हम स्वयं को छल रहें हैं।



समानता


ग़म और  ख़ुशी
एक लहर हैं दोनों
ठहरता कोई नहीं
गुजर जाते हैं दोनों ही
फितरत में नहीं हैं
उनके ठहर जाना
और
ठहरें भी क्यों
कोई एक भी
अगर ठहर गया
तो
जिन्दगी ठहर जाएगी
फिर
न  ख़ुशियाँ  ख़ुशी देगीं
न ग़म दु:ख देगा
इसलिए बस
दोनों चलते ही जाते हैं
लगातार
अनवरत्
जीवन भर
जीवन में।

"उन्मत्त"