कभी कभी जीवन में ऐसे लम्हें आ खड़े होते हैं, जब यह तय ही नहीं हो पाता है कि जो हो रहा है वह सही है या नहीं। साथ ही उस समय इस बात पर भी बार बार हर बार मन यह प्रश्न खड़ा करता रहता है, कि जो करने की सोच रहे हो, एक बार पुनः सोच लो कि, जो सोच रहे हो वह सही है कि नहीं। मन उकता जा है ऐसे लम्हों में रहते रहते, लेकिन ऐसे लम्हों से बचा भी नहीं जाया जा सकता है। कितना भी अपने आप को उससे दूर रखने का प्रयास किया जाए, मगर मन स्वयं ही नहीं मानता है। दौड़ दौड़ कर वहीं पहुच जाया करता है। अजब है जीवन और शायद अजब ही रहेगा हमेषा। समझ से परे होता है ज्यादातर जीवन के ऐसे पल।
ऐसे ही लम्हों में मन ने यही कहा करता है अक्सर:-
कुछ न मुकद्दर में हो, ऐसा भी हो सकता है,
बस एक दर्द ही हमदर्द हो, ऐसा भी हो सकता है।
कितनों को गिनोगे कि जो हैं खि़लाफ तुम्हारे,
खुद का ज़मीर भी हो, ऐसा भी हो सकता है।
जो टूट के बिखर गया वो दिल उसका ही था,
दर्द उसमें मगर तुम्हारा हो, ऐसा भी हो सकता है।
मेरी आवाज़ पर आया तो क्या आया वो हमदम,
महसूस करके मुझे आया हो, ऐसा भी हो सकता है।
महसूस करके मुझे आया हो, ऐसा भी हो सकता है।
नाकाम न कह, नाउम्मीद है जो ज़िन्दगी से अभी,
एक दिन वक्त उन्हीं का जाएगा हो, ऐसा भी हो सकता है।
‘‘उन्मत्त’’ शायद सब कुछ हासिल भी होगा एक दिन,
ज़रूरत मगर तब न हो, ऐसा भी हो सकता है।
‘‘उन्मत्त’’
7 comments:
bahut khoob........
कितनों को गिनोगे कि जो हैं खि़लाफ तुम्हारे,
खुद का ज़मीर भी हो, ऐसा भी हो सकता है।
achha kaha...
बहुत सुंदर!
नयनाभिराम!
स्वागत!
बधाई!
शुभकामनाएँ!
कितनों को गिनोगे कि जो हैं खि़लाफ तुम्हारे,
खुद का ज़मीर भी हो, ऐसा भी हो सकता है।
-आपके भाव अच्छे लगे.
Good One....
Cordially Invited To:
lifemazedar.blogspot.com
Sincerely
Chandar Meher
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
कृपया दूसरे ब्लॉगों को भी पढें और उनका उत्साहवर्धन
करें
gajab kar diya jee.narayan narayan
चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
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