Monday, November 30, 2009

ओ यादों






व्यक्तिगत रूप से हमें कल यानि कल के पलों से, मायने अपनी यादों से बहुत तकलीफ होती है, याद के चिरपरिचत नियम से भी हमको बहुत शिकायत है कि, कल अच्छी यादें आज में रूलाती हैं, जबकि कल की बुरी यादें आज में चेहरे पर मुस्कान ही लाती हैं। बहुत चाहते हैं कि हम अपने आप को, अपने अच्छे कल से अलग रखें, कल का एक पल भी हमको किसी भी तरह से परेशान न कर पाए लेकिन ऐसा आज तक एक बार भी न हो पाया है हमसे। यादें जब चाहतीं हैं, तब अपने आप को हममें ऐसे उत्पन्न करतीं हैं कि, हमसे कुछ हो ही नहीं पाता है। किसी के भी साथ हो हम, अपने आप को सबसे अलग कर लेने का मन होने लगता हैं उन पलों में, जब कल का पल हमारे साथ आ जाता है। जीवन बेअर्थ और शून्य सा लगता है, ऐसे समय में भावना भी अपनी चरम गति को धारण करके, अवसाद की स्थिति को ऐसे निमंत्रित करती है, कि बस कल के साथ अपने आप को देखना भी हमको नहीं सुहाता है।

कल के साथ सिर्फ बुरे अहसास ही नहीं जुडे़ हैं, कुछ अच्छे पल भी जीवन में हैं, कल में हैं, लेकिन जाने क्यों मन उसी के पीछे भागता है, जहां उसे भागना नहीं चाहिए। कल के कुछ पल स्वयं को गौरान्वित भी महसूस करातें हैं। शायद हमने अपने आप को ऐसा बना लिया है, जिसके अनुसार हमको, हमारा अतीत ज्यादा प्रभावित करता है, वह भी ऐसा अतीत जो अच्छा नहीं है, अतीत की गलतियाँ हमको बहुत याद आती हैं, अतीत जब भी सामने आता है, तब तब यही ख़्याल आता मन में कि, एक बार फिर से वक्त पलट जाए तो, हम अपनी गलतियों को सुधार लें। हमेशा सकारात्मक सोचते हैं, जिससे और भी तकलीफ होती है हमको, क्योंकि आज में हम भविष्य का निर्माण करते हैं और किन्हीं कारणों से अगर भविष्य बिखर जाए, तो वह भविष्य, वर्तमान में अत्यन्त दुःखदायी बन जाया करता है।



दिल न दुखाओ, ओ यादों,
उनको भुलाओ, ओ यादों।

कठिन नहीं है वक्त से लड़ना,
ध्यान लगाओ, ओ यादों।

लौट चुका है, आने वाला,
लौट भी जाओ, ओ यादों।

कितनी दफहें ठोकर खाए हम,
सबक सिखाओं, ओ यादों।

जीवन को है बस चलते जाना,
आवाज़ न लगाओ, ओ यादों।

‘‘उन्मत्त’’ ठहरा तो मर जाएगा,
गुजर भी जाओ, ओ यादों।

‘‘उन्मत्त’’

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