Wednesday, December 2, 2009

बनाना है





जीवन में कभी कभी ऐसा लगने लगता है कि, अब कुछ बचा ही नहीं दुनिया में हमारे लिए? कुछ भी हमारा नहीं है और कभी कुछ हमारा होगा भी नहीं, यह अहसास उभरने लगता है मन में। पहला भाव जीवन के लिए नुकसानदेह तो है, लेकिन उतना घातक नहीं है, जितना दूसरा भाव कि, कुछ कभी होगा भी नहीं, यह अत्यन्त ही घातक है। यह भाव जीवन के प्रति सारे आकर्षण को समाप्त कर देता है, जीवन के प्रति उत्साह समाप्त हो जाने के बाद, जीवन जीना बेमानी हो जाता है, इसलिए यह भाव जीवन में नहीं आने देना चाहिए। किन्हीं कारणों से यह भाव अगर आ गया तो, पूरा प्रयत्न करना चाहिए कि, जितनी जल्दी हो सके यह भाव अपने आप से दूर किया जा सके। उससे ज्यादा बेहतर यह है कि जीवन में ऐसा मौका जब भी आता दिखे तो, उसके लिए अपने आप को तैयार रखा जाए, अपने आप को संयमित रखे, शान्त भाव से समय का, परिस्थिति का अवलोकन करें, उसके बाद ही किसी परिणाम पर पहुॅचे और कोई प्रतिक्रिया दें।

बहुत आसान होता है इस तरह की बातें करना, लेकिन प्रश्न यह है कि, कितनी बार अपने लिए ऐसे समय में अपने लिए इन बातों का पालन किया जाता है? समय जब विपरीत लगने लगता है तब, जीवन से भाग जाने के सिवा कोई राह तो नहीं सूझता है। किसी पर भी विश्वास करने का मन भी नहीं करता है, मन क्या? विश्वास ही नहीं होता है किसी पर। ऐसा होता है ज्यादातर, अवसाद जब आपका साथ निभाने आता है तब, यकीनन वह पूरी तैयारी के साथ आता है, इस बात के लिए वह पूरी तरह से तैयार रहता है कि, सम्भवतः आप उसे वापस भेजना चाहें, जिसके लिए वह कतई भी तैयार नहीं रहता है। अपने आप से उसका वादा होता है और वह अपने आप से किये वादे को तोड़ना नहीं चाहता है और तोड़ता भी नहीं है वो।





राह नहीं आसान पर, आसान बनाना है ,
नहीं है अभी मगर पहचान, बनाना है।

हाथो की लकीरों का होगा ही हासिल,
कर्मों से खुदा के लिए फरमान, बनाना है।

पूज रही है मुझको दुनिया, पूजा करे हमारी वो,
खुद में पर मुझको अपना सम्मान, बनाना है।

भटक रहा है इधर उधर, जो पागल सा,
मन की इस चंचलता पर व्यवधान, बनाना है।

अहसासों और भावों का घर था दिल मेरा,
लुट चुका है जो, उसको धनवान, बनाना है।

‘‘उन्मत्त’’ जीवन मेरा है, एक दीवान,
अब मुझको बस एक उनवान, बनाना है।

‘‘उन्मत्त’’

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