Saturday, December 5, 2009

अन्तहीन पथ



अक्सर लोग उन रास्तों को दोष देते फिरते हैं जिन पर वो चला करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों को कौन समझाए कि, रास्ते ने उनकों नहीं, उन्होनें रास्ते को चुना है? तमाम उलहनाओं के बाद, तमाम तरह की भत्र्सनाओं के बाद भी, रास्ते कभी भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होते हैं, वह नहीं बदलते हैं, उनकी नीयती ही न बदलना है। उनको बदलने वाले हम इन्सान ही होते हैं। फिर भी उनको ही दोष दिया करते हैं। अपने आप को देखते ही नहीं कि, वास्तव में गलती हमारी ही है, हमने ही गलत राह को चुना है, हमको ही इस राह को छोड़ कर, सही राह को चुनना है। इसे करने से बेहतर ज्यादातर तो यही किया करते हैं कि, अपने दोषों को, औरों पर डालने का कार्य चलता रहता है।


कभी फुरसत मिले अपने लिए भी तो एक बार सोच कर देखिएगा कि, वास्तव में गलत कौन है? औरों के लिए जिस बुद्धिमत्ता का प्रयोग हम सब कर लेते हैं, वह अपने समय में, अपने बारे में कतई भी नहीं आती है। अपने समय में ऐसा लगता है कि, सब कुछ हम सही रह हैं, लेकिन अगर सिर्फ ऐसा सोचने और मानने कि, सब कुछ सही है, हो जाता तो, दुनिया बहुत ही विचित्र होती। खै़र हम सिर्फ इतना कहेगें कि रास्तों को दोष देना बन्द करना चाहिए, अपने निर्णय को देखिए, परखिए, फिर कोई बात कहिए।






दूर नहीं हैं मंज़िल

न पथ का है दोष कोई

मैंने ही चुना है

जिस पथ को

वह पथ ही है ‘‘अन्तहीन पथ’’

बीत गये साल कई

मैं चल रहा निरन्तर हूँ

ठिकाना दिखने की बात दूर रही

उसके होने की आहट न पायी

अपने पथ को कोसा है मैंने बहुत

बहुत सुनायी है उसको बातें

पथ वो शान्त रहा है

मुझको लेकर चलता रहा है

एक दिन यूँ ही बैठे बैठे

अपने निर्णय को जांचा

पाया तब मैंने

पथ नहीं

पथिक गलत होता है

पथ नहीं चुनता है, पथिक

पथिक चुनता है पथ को

पथ अपने कर्तव्यों पर चलता है

अपने अन्त तक

पथिक को लिए रहता है।


‘‘उन्मत्त’’