Thursday, December 17, 2009

सन्दीप ओझा




मित्र, यदि जीवन में न हो तो? यह कल्पना करना भी हमारे लिए दूभर है कि, हमारा जीवन मित्रों के बिना कैसा होता या होगा? शायद हमको अस्तित्व को तलाशना पड़ेगा पुनः यदि हमारे जीवन से हमारे मित्रगणों हटा लिया जाए तो। हमारे मित्रों की संख्या बहुत ही कम हैं, लेकिन यह हमारा सौभाग्य है कि, हमारे मित्र उच्चकोटि के व्यक्ति हैं। जीवन 30 से अधिक सालों में, पिछले 16 सालों में हमने अपने जीवन का बहुत समय, अपने मित्रों के साथ गुजारा है। आज जितनी भी सोचने समझने की क्षमता है, वह हमारे अभीष्ट मित्र सन्दीप कुमार ओझा का है, वो इस श्रेय को लेने से सदैव ही इन्कार करते हैं, लेकिन सच को तो बदला ही नहीं जाया जा सकता है। जीवन के झन्झावतों से अगर हमको किसी में उबारने की क्षमता, इस समय यदि इस दुनिया में है तो, वह सिर्फ और सिर्फ सन्दीप के पास ही है, हमें यह कहते हुए भी संकोच नहीं होता है और होगा कि, धरती पर वह हमारे लिए ईश्वर से कम नहीं है, सुनने यह अटपटा लग सकता है, लेकिन जैसा कि, हमने कहा कि, सच तो हमेशा ही रहेगा, उसको बदला नहीं जा सकता है। शायद अपने आप को हमारे लिए ईश्वर ने यही रूप धारण किया हो? शायद के स्थान पर यकीनन का प्रयोग करना उचित समझेगें।

बहुत बार हमने कोशिश की कि, सन्दीप के महत्व को हम जान पाए, लेकिन हर बार विफल हुए हैं, जितना उसके बारे में सोचते हैं, वह उतना ही करीब होता जाता है हमारे। कई बार शब्दों में भी बांधने का प्रयास किया है हमने, मगर वहां पर भी हार ही गये है हम। मित्रता की शुरूआती दौर से हमारे और उसके बीच अक्सर गर्मागम बहसें हो जाया करती हैं, जिसमें हमेशा ही हम ही हारते हैं और हारा ही करें, यही चाहते भी हैं, क्योंकि उस हार से हमको हमेशा ही एक नहीं, कई सीखें मिल जाया करती हैं। 16 सालों की मित्रता में कई अवसर ऐसे भी आए हैं कि, जहां हम लोगों में बातचीत भी नहीं हुयी है, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि, नाराज़गी के कारण हम लोगों ने मिलना जुलना छोड़ दिया रहा हो, वो हमारे घर, हम उसके घर लगातार जाते रहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे सामान्य दिनों में हुआ करता है। जब से दूरसंचार क्रांति आ गयी है, उसके बाद भी कई नाराज़गियाँ हम दोनों के मध्य हुयी है, इसी बरस दो बार ज्यादा ही नाराज़ हुआ है हम पर वह। वैसे सामान्यतः तो हमेशा ही वह हमसे, हमारी आदतांे के कारण नाराज़ हो उठता है। लेकिन हमको तो उसकी बातों की आदत पड़ गयी है, कुछ दिन उसकी बातें न सुने तो, जैसे खाना ही नहीं पचता है। कभी भी सन्दीप से हमने कुछ भी नहीं छिपाया है, यहाँ तक कि, जो कुछ करने की सोच भी लेते हैं उसको भी उसके बताए बिना रह नहीं पाते हैं।

अपनी लाख चाहतों के बाद भी सन्दीप के लिए कुछ पाने में असमर्थ ही रहें हैं, लेकिन फिर भी कहने के प्रयास से कभी भी विमुख नहीं हुए हैं, सफलता कब प्राप्त होगी? इसके बारे में कुछ कह पाना मुष्किल ही है। शायद जीवन भर इसी प्रयास में रहें कि, हम सन्दीप को अपने शब्दों में कह सकें। हमको इस बात की खुषी हमेशा रहेगी कि, हम उसे कभी भी परिभाषित नहीं कर पाए, साथ ही दुआ करतें हैं कि, सन्दीप का व्यक्तित्व ऐसा हो कि, कभी भी, कोई भी उसको परिभाषित ही न कर पाए, कभी कलमबद्ध न कर सके कोई, अथाह, अन्नत हो उसका स्वरूप।


सन्दीप के विषय में हमारी यही चाहत है, यही हरसत है --------

घर जाएगें, फिर आएगें,
मर जाएगें, फिर आएगें।

भूल न जाना अपने इस साथी को,
मर जाएगें, फिर आएगें।

छूट गया है हाथों से हाथ, मगर,
मर जाएगें, फिर आएगें।

निभाने हैं वादे अपने हमको,
मर जाएगें, फिर आएगें।

जा रहें हैं, सैर को कुछ दिन,
मर जाएगें, फिर आएगें।

‘‘उन्मत्त’’ कौन है, जन्नत में मेरा,
मर जाएगें, फिर आएगें।

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